संस्थापक श्री गीदवानी जी का परिचय
हड़प्पा की संस्कृति का प्रदेश सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में एक गर्भश्रीमंत परिवार में श्री विशन परमानंद जी का जन्म 13 मार्च 1924 को हुआ था । बचपन से ही वे स्वतंत्र विचार वाले तथा निडर स्वभाव के थे । अभ्यास में तेजस्वी विद्यार्थी थे जब भारत में सन 1942 “क्विट इंडिया “के आंदोलन की शुरुआत हुई थी तब देशभक्ति की लगन में उन्होंने सुख-साहबी और अभ्यास छोड़कर 17 साल की उम्र में ही गृह त्याग किया ।
सन 1943 में आजादी तो मिली लेकिन देश का हिंदुस्तान और पाकिस्तान में विभाजन हो गया । विभाजन के समय आम जनता में जो कष्ट का सामना करना पड़ा उस तबाही को उन्होंने अपनी नजरों से देखा और उनको इसकी हृदय पर गहरी चोट लगी तब उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर देश सेवा करने का दृढ़ संकल्प किया ।
भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए उन्होंने कृषि विषयक अभ्यास किया। साथ-साथ में गरीब लोगों के पास एलोपैथी की महंगी दवाइयां खरीदने के पैसे नहीं थे यह सोचकर उन्होंने आयुर्वेद का अभ्यास किया और शुरू- शुरू में उन्होंने हरियाणा और राजस्थान में कृषि सुधार के सफल प्रयोग किए और सामाजिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर आयुर्वेदिक क्लीनिक का संचालन किया ।
उनकी बुद्धि प्रतिभा देश भक्ति और सेवा की प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर उस समय के राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल सुखड़िया जी ने उनको प्रधान मंडल में शामिल होने का न्योता दिया । मगर गीत वाणी जी ने इस प्रलोभन में ना आकर समाज सेवा के कार्य में जुट गए । इन सब रचनात्मक प्रवृत्ति करने के साथ-साथ उनके मन का अधिगम आध्यात्मिक था । इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए आप हिमालय में अनेक साधु संतों के संपर्क में आए उनमें से एक संत श्री सियाराम जी जिनके चरणों में रखकर आपने पातंजल योग विद्या का अभ्यास किया । पातंजल योग विद्या का ध्यान करते समय आपको लगा कि इस विद्या को अच्छी तरह से समझने के लिए भौतिक शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है । इस प्रेरणा से प्रेरित होकर आप गुजरात मे आए और 32 साल की उम्र में अहमदाबाद की भौतिक शास्त्र का अध्ययन किया वहीं से स्नातक होकर आप इसी कालेज ने विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे ।
सन 1963 में 40 साल की आयु में जी आपको संधिवात (Arthritis) की शारीरिक बीमारी हुई । एलोपैथी ,आयुर्वेद, होम्योपैथी इत्यादि अनेक प्रकार के इलाज करवाने के बावजूद भी परिणाम शून्य रहा । आप अपने स्वास्थ्य की गहरी चिंता में डूब गए । ऐसे समय में एक मित्र ने आपको गोरखपुर जाकर प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा उपचार कराने की सलाह दिया । गोरखपुर के अस्पताल में जहां कोई दवा नहीं की जाती थी बस सुबह में गाजर, अथवा अन्य किसी सब्जी का रस दिया जाता था ,दोपहर के भोजन मे कच्ची सब्जियां , बिना चुपड़ी हुई रोटी या और बिना मिर्च मसाले वाली पकाई हुई सब्जियां । 4 बजे फिर कोई फलदार फल खाने को मिलते थे और रात को दोपहर जैसा ही खाना। इतनी छोटी थी और सादगी वाला उपचार पद्धति से सिर्फ 15 दिनों में अपने संधिवात बीमारी से स्वास्थ्य प्राप्त कर लिया एक चमत्कार जैसा हो गया ।
तरफ से आपके जीवन में पातंजल योगाभ्यास के साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की और रुचि बढ़ी एक टर्निंग प्वाइंट आ गया । फिर गुजरात में वापस आकर आपने प्राकृतिक चिकित्सा का यज्ञ शुरू किया जिला, तहसील और गांव-गांव में आपने प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार प्रसार किया, डॉ. शेल्टन , डॉ. ट्रॉल, डॉ. लिन्डहार आदि प्राकृतिक चिकित्सा के प्रकांड पंडितों के लिखे हुए साहित्य का गहरा अभ्यास करके आपने “निसर्गोपचार द्वारा रोग मुक्ति” नामक पुस्तक लिखकर उसका प्रकाशन किया । जिसकी पॉपुलर की और डिमांड इतनी प्रचंड फैली हुई थी कि उस पुस्तक की दो-दो एडिशनल प्रतियां उसके छपने से पहले ही बिक चुकी थी । इस पुस्तक को गिडवानी जी की प्राकृतिक चिकित्सा की “गीता” माना जाता है इसका इतना लोग भाग्य रहा साथ में एक स्वास्थ्य संलग्न आरोग्य प्रकाश नामक त्रैमासिक पत्रिका प्रारंभ किया जो आज भी आरोग्य रत्नाकर के नाम से प्रकाशित होती है । पूज्य गांधी बापू के साधन स्थल पर इस पुस्तक का आदर करके गिरवानी जी को हरिजन आश्रम में एक मुकाम दिया गया । जिसका नाम प्रा-ट्रस्ट रखा गया । यहां रहकर आप प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार प्रसार और आगे बढ़ा सके ।
लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा के यह प्रखर हिमायती की जीवन चर्या अति प्रवृत्तमय रहने से बिल्कुल अनियमित हो गई । कुदरत को यह मंजूर नहीं था । इसलिए सन 1989 के 16 फरवरी को इस महान विभूति का जीवन-दीप अकाल बुझ गया ।
न जायते म्रियते वा कदाचि– न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो– न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
गीदवानी का देह विलय हो गया लेकिन उनकी प्रवृतियां तो चालू रखनी ही थी । आज हम प्रा-योग ट्रस्ट परिवार के सदस्य मिलजुल कर उनकी प्रवृत्ति को आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील है ।
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स्थापना – 1982Courses –
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To WYO Affiliation- 80 students